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Saturday, July 1, 2017

श्रीमद्भगवद्गीता चिंतन पुनरारम्भ



                                           ॐ      


                     अद्धैतामृतवर्षिणीम्     भगवतीमष्टादशाध्यायिनीम् 
                     अम्ब  त्वामनुसंदधामि  भगवद्गीते    भवद्वेषनीम्   l 

अद्धैत का अमृत बरसाने वाली, हे भगवती आप अठ्ठारह (१८) अध्यायों वाली  हैं,
हे  अम्ब  (माता) श्रीमद्भगवद्गीता आपका  अनुसंधान  करने से आप  भवद्वेष
से मुक्त करानेवाली हैं .


उपरोक्त  पंक्तियों के साथ मैंने  अपनी पिछली पोस्ट श्रीमद्भगवद्गीता-चिंतन - १
का  समापन  यह लिखते हुए किया था  कि उपरोक्त  पंक्तियों   का  स्मरण  करते  हुए  हम  सभी मिलकर श्रीमद्भगवद्गीता  का अध्ययन,मनन और चिंतन करने का पुनः पुनःप्रयास करते रहेंगें.

तीन  साल से  भी अधिक समय बीत गया है , परन्तु  किसी न किसी  कारण से मैं स्वयं ही  पोस्ट लिखने 
में असमर्थ रहा. अब फेस बुक  पर हमारे ताऊ रामपुरिया जी  का बुलावा हुआ है  और उन्होंने  बड़े 
मनोयोग  से ब्लोगिंग  फिर से प्रारम्भ करने का सभी को आवाहन  किया है. 

मैं कोशिश करूँगा कि श्रीमद्भगवद्गीता चिंतन का पुनरारम्भ करते हुए  कुछ और आगे लिखने का साहस करूँ.अगली पोस्ट का विषय अर्जुन विषाद योग  जो कि श्रीमद्भगवद्गीता  का  प्रथम अध्याय है पर मैं  अपने  विचार आपके समक्ष सरल शब्दों  में रखने का प्रयास करूँगा. आशा करता हूँ  ब्लोगिंग जगत के सभी सुधिजन मेरे प्रयास पर  अपने अपने सुविचार प्रस्तुत  कर  मुझे अपना सहयोग प्रदान करेंगें.

ॐ तत्सत्.