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Thursday, February 16, 2012

मेरी बात - ब्लॉग्गिंग की प्रथम वर्षगाँठ

                             यज्ञ दान तप: कर्म  न त्याज्यं कार्यमेव तत्                           
                             यज्ञो दानं  तपश्चैव  पावनानि   मनीषिणाम्

यज्ञ,दान  और तपरूप कर्म त्याग करने के योग्य नहीं हैं,बल्कि वह तो अवश्य कर्तव्य हैं.क्यूंकि यज्ञ,दान और तप - ये तीनों ही कर्म बुद्धिमान पुरुषों को पवित्र करनेवाले हैं.

उपरोक्त श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय १८ का पांचवां श्लोक है.जिसमें  भगवान श्रीकृष्ण ने अपना निश्चय किया हुआ उत्तम मत  प्रकट किया है कि 'यज्ञ ,दान और तपरूप कर्मों को तथा और भी सम्पूर्ण कर्मों को आसक्ति और फलों का त्याग करते हुए अवश्य ही करना चाहिये'. इस श्लोक पर यदि चिंतन किया जाए तो हम पायेंगें कि यह हमारे सम्पूर्ण जीवन के लिए मूल मन्त्र   है.

'तप' का अर्थ उन बातों को  सीखते (Learn) रहना है  जो हमें जीवन में स्थाई (permanent)चेतन आनंद यानि ईश्वर  प्राप्ति की ओर अग्रसर करती रहें.तप करने में शरीर,मन ,बुद्धि,वाणी,कर्म सभी को सदा साधते रहना पड़ता  है.इसलिए जीवन के हर स्तर पर  सीखने के लिए तत्पर रहने की आवश्यकता है.अस्थाई (temporary) आनंद के लिए किया गया तप निरर्थक और क्लेश मात्र ही है.ब्लॉग्गिंग में सार्थक पोस्ट  और टिपण्णी लिखने  का प्रयास एक सुन्दर तप ही  है.

'यज्ञ' का अर्थ सीखे हुए को पूर्ण मनोयोग से  आनंदपूर्वक करते रहना ( execute smoothly)  है.यदि हम ऐसा नहीं करेंगें तो  हमने जो सीखा उसे  शीघ्र भुला देंगें.यज्ञ करते रहने से आनंद की वृष्टि होती है  जिससे सर्वत्र पोषण होता  है.इसलिए यज्ञ की भी हमेशा ही आवश्यकता है.श्रीमद्भगवद्गीता में अनेक प्रकार के यज्ञ बतलाये गए हैं .यथा 'द्रव्य यज्ञ, स्वाध्याय यज्ञ,जपयज्ञ ,ज्ञान यज्ञ आदि आदि.जिनमें 'ज्ञान यज्ञ' सर्वश्रेष्ठ यज्ञ और जप यज्ञ को भगवान ने अपना स्वरुप ही बतलाया  है.ब्लॉग जगत में 'ज्ञान यज्ञ' किया जाना  अभीष्ठ और श्रेष्ठ प्रयास  है.

'तप' और 'यज्ञ' करते रहने से ज्ञान और अनुभव अर्जित होता जाता है.यदि अर्जित  ज्ञान और अनुभव का वितरण (distribution)/दान न हो तो यह निरर्थक  रह सकता है .इसलिए  ज्ञान और अनुभव को सुयोग्य पात्र
को 'दान' करने की भी परम आवश्यकता है.यह सुयोग्य पात्र एक  'learner' या तपस्वी होता  है. अपने अपने ज्ञान और अनुभव का ब्लॉग जगत में अपनी पोस्टों और टिप्पणियों के माध्यम से वितरण किया जाए  तो
यह  जिज्ञासु जन/learners  के लिए सुन्दर दान है.

मैंने अपने ब्लॉग का नाम 'मनसा वाचा कर्मणा' इसी उद्देश्य से रक्खा है  कि  मन से,वाणी से और कर्म
से मैं आप सभी सुधिजनों के साथ सदा सीखने के लिए चेष्टारत रह सकूँ.माह फरवरी २०११ में मैंने अपनी
पहली पोस्ट 'ब्लॉग जगत में मेरा पदार्पण' लिखी थी.दूसरी पोस्ट 'जीवन की सफलता अपराध बोध से मुक्ति',तीसरी 'मन ही मुक्ति का द्वार है' ,चौथी 'मो को कहाँ ढूंढता रे बन्दे'.
फिर मार्च २०११ में 'मुद मंगलमय संत समाजू',' ऐसी वाणी बोलिए' और 'बिनु सत्संग बिबेक न होई' लिखीं.
अप्रैल में 'वंदे वाणी विनायकौ','रामजन्म -आध्यात्मिक चिंतन-१'
'रामजन्म-आध्यात्मिक चिंतन-२'.  
मई  २०११ में  'रामजन्म-आध्यात्मिक चिंतन-३' व 'रामजन्म- आध्यात्मिक चिंतन-४', 
जून,जुलाई, अगस्त,सितम्बर और अक्टूबर २०११ में 'सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन-१' 
'सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन-२','सीता जन्म-आध्यात्मिक चिंतन-३',
'सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन-४'  'सीता जन्म आध्यात्मिक चिंतन-५' 
माह नवम्बर और दिसम्बर २०११ में 'हनुमान लीला -भाग १' और 'हनुमान लीला -भाग २' लिखीं.
और माह जनवरी २०१२ में ब्लॉग्गिंग में एक वर्ष पूर्ण करने से पूर्व  'हनुमान लीला भाग-३' लिखी.
इस प्रकार कुल २० पोस्ट ही मेरे द्वारा लिखीं गयीं जिन पर आप सुधिजनों ने अपने सुवचनों का
अनुपम 'दान' और भरपूर सहयोग मुझे दिया  है.यह मेरे लिए अत्यंत हर्ष और उत्साह की बात है
कि मैं आपका कृपा पात्र बन सका.इसके लिए मैं आप सभी का हृदय से आभारी हूँ और सदा ही रहूँगा.
मैं यह भी आग्रह करूँगा कि जिन सुधिजनों की उपरोक्त पोस्ट में से कोई पोस्ट पढ़ने से रह गयीं हों तो
वे एक बार  उस पोस्ट को पढकर अपने सुविचार प्रकट अवश्य करें.

मैं सदा प्रयासरत रहना चाहूँगा कि आप सभी के साथ सत्संग के माध्यम से एक दुसरे से सीखना जारी रहे
और 'तप', यज्ञ' और 'दान' के माध्यम से हम अपने अपने जीवन को सुखमय,आनन्दित व पावनमय बनाने
में भगवान कृष्ण के उपरोक्त उत्तम मत को अपने हृदय में धारण कर सकें. आप अपना अमूल्य समय
निकाल कर मेरे ब्लॉग पर आते हैं,और सुन्दर टिपण्णी से  मेरे प्रयास को यज्ञ का स्वरुप प्रदान करते हैं
इससे आनंद की वृष्टि होती है.मैं भी आपके ब्लोग्स पर जाकर टिपण्णी करने का यथा संभव प्रयास
करता हूँ.सभी सुधिजनों की सभी पोस्ट पर नहीं जा पाता हूँ,इसका मुझे खेद है. डेश बोर्ड पर भी आपकी
पोस्ट बहुत बार चूक जातीं हैं.सभी से  अनुरोध है कि आप अपनी पोस्ट की सुचना मेरे ब्लॉग पर अपनी
टिपण्णी के साथ भी दें तो आसानी रहेगी.मैं भी अपनी पोस्ट की सूचना आपके ब्लॉग पर अक्सर दे देता हूँ.
यदि सूचना के बाबजूद  नियमित पाठक नहीं आतें हैं तो मुझे चिंता और निराशा होती है.चिंता उनके
कुशल मंगल के विषय में जानने की व निराशा उनके अनमने या नाराज होने की.यदि मेरी  किसी भी बात से
आपको नाराजगी हुई हो तो इसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ.अपनी नाराजगी यदि आप मुझे बताएं  तो मैं
उसको यथा संभव दूर करने का प्रयत्न करूँगा.परन्तु,आपका अकारण नाराज होना और अनुपस्थित रहना
मुझे व्यथित करता है.मैं आप सभी को यह भी बतलाना चाहूँगा कि इंटरनेट और कंप्यूटर की मुझे
अति अल्प  जानकारी  है.इस सम्बन्ध में मुझे समय समय पर 'खुशदीप भाई' 'केवल राम जी','शिल्पा बहिन' और 'वंदना जी का सहयोग मिलता रहा है.इसके लिए मैं उनका हृदय से आभारी हूँ.

ब्लॉग जगत में हम सब का सकारात्मक मिलन परम सौभाग्य की बात है. पोस्ट,टिपण्णी व प्रति टिपण्णी
द्वारा ही सुन्दर 'वाद' की सृष्टि होती है ,जो 'परमात्मा' अर्थात 'सत्-चित -आनंद' की एक उत्तम विभूति ही है.

ब्लॉग्गिंग की प्रथम वर्ष गाँठ पर 'मेरी बात' पढ़ने के लिए आप सभी का पुनः बहुत बहुत हार्दिक आभार
और धन्यवाद.

आज ही मेरे बेटे पारस का  पच्चीसवां  जन्म दिवस भी है.
                              
                        जय जय जय हनुमान गुसाईं, कृपा करो गुरु देव की नाईं

अगली पोस्ट भी मैं 'हनुमान लीला' पर ही जारी रखना चाहूँगा.

आप सभी की कृपा और आशीर्वाद का सैदेव आकांक्षी
राकेश कुमार.